Assam:पथारीघाट को क्यों कहते हैं असम का जलियांवाला बाग? सेना ने दी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि – Why Patharighat Called Jallianwala Bagh Of Assam! Army Pays Tribute To Freedom Fighters


Eastern Command Chief Lt Gen RP Kalita paying homage to freedom fighters

Eastern Command Chief Lt Gen RP Kalita paying homage to freedom fighters
– फोटो : Amar Ujala

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असम के मंगलदै जिले के पथारीघाट के स्वतंत्रता सेनानियों को सोमवार को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 28 जनवरी, 1894 को पथारीघाट के किसानों ने अंग्रेजों के कर नीति का विरोध किया और कर देने से इनकार कर दिया। किसान अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। अंग्रेजों ने उनकी एक नहीं सुनी। विरोध कर रहे निहत्थे किसानों को अंग्रेजों ने गोलियों भून डाला। इस क्रूर हत्याकांड में 140 किसान शहीद हो गए और 150 से अधिक किसान घायल हो गए थे। इस महान शहादत को ‘कृषक शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सोमवार को सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता और मंगलदै के सांसद सहित गणमान्य लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं: कलिता

श्रद्धांजलि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता ने कहा, स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। देश की आजादी में हमारे पूर्वजों ने सर्वोच्च बलिदान दिया। पराधनीता की जंजीर को तोड़ने के लिए असम के महान वीरों ने अपना बलिदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम में पथारीघाट विद्रोह की एक अलग पहचान है। पथारीघाट विद्रोह असम के समृद्ध इतिहास में महान एतिहासिक मील के पत्थर और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसके गौरवशाली योगदान में से एक है।

‘पथारीघाट’ असम का जलियांवाला बाग

1826 में असम के अंग्रेजों के शासन में विलय के बाद, उन्होंने किसानों पर भारी भूमि कर लगाना शुरू कर दिया। अत्याचार और बढ़ गया जिसमें ब्रिटिश सरकार ने कृषि भूमि कर को 70-80 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला किया। पूरे असम में, किसानों ने शांतिपूर्ण जन सम्मेलनों का आयोजन करके इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इन सभाओं के लोकतांत्रिक होने के बावजूद, अंग्रेजों ने उन्हें ‘राजद्रोह’ के रूप में माना। 28 जनवरी, 1894 को जब ब्रिटिश अधिकारियों ने किसानों की शिकायत सुनने से इनकार कर दिया, तब मामला गरमा गया। क्रूर अंग्रेजों ने निहत्थे किसानों को घेर कर गोलियां बरसाई गईं, जिसमें 140 किसानों की हत्या कर दी और 150 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। इस घटना को याद करते हुए बरबस ही जलियांवाला बाग की याद ताजा हो आती हैं।

स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल ने किया था

असम के आम लोगों के सर्वोच्च बलिदान को उजागर करने और राष्ट्र के लिए उनकी वीरता और प्रेम को याद करने के लिए घटना स्थल पर एक स्मारक का उद्घाटन 28 जनवरी 2001 को असम के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा (सेवानिवृत्त) ने किया था। स्मारक का निर्माण भारतीय सेना और नागरिक प्रशासन के निकट सहयोग से किया गया था। इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, पूर्वी कमान लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता, दिलीप सैकिया और सांसद मंगलदोई, की उपस्थिति में पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मेजर जनरल एस सज्जनहार, चीफ ऑफ स्टाफ गजराज कोर, जनरल पीके भराली (सेवानिवृत्त) और कई अन्य वरिष्ठ सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी और नागरिक गणमान्य लोग उपस्थित थे।



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