कई सिद्ध पुरुष इस बात का दावा भी कर चुके हैं कि उन्होंने धर्मराज की कचहरी में होने वाले सवाल-जवाब खुद सुने हैं। हालांकि इसके फिलहाल प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद नहीं हैं। चौरासी परिसर में बने इस मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त का आसन बनाया गया है। जबकि मंदिर से पहले सीढ़ियां और एक गुप्त यंत्र स्थापित है। बताया जाता है कि इसी गुप्त यंत्र से धर्मराज सबके जीवन का हिसाब लेते हैं। साथ ही मंदिर के बगल में ढाई सीढ़ियां लगी हैं जिन्हें स्वर्ग के दरवाजे के रूप में भी देखा जाता है।
इस तरह हुई मंदिर की खोज
ऐसा माना जाता है कि भरमौर में चौरासी मंदिर परिसर दसवीं शताब्दी से भी पहले का बना है। यहां अलग-अलग देवताओं की शरण स्थली है। चौरासी में धर्मराज मंदिर वाली जगह स्थापित टेढ़ा शिवलिंग था। यहां महाराज कृष्ण गिरि ने 1950 के बाद अपना आसन लगाया था। बताया जाता है कि उस समय महात्मा के साथ मिलकर कुछ लोगों ने शिवलिंग का सीधा करने की कोशिश की। लेकिन अंतहीन खुदाई की वजह से उन्हें काम रोकना पड़ा। इसके बाद महाराज कृष्ण गिरि ने कई महीनों तक मंदिर के बाहर साधना की और उन्हें इस बात का आभास हुआ कि यहां धर्मराज की कचहरी लगती है। महाराज कृष्ण गिरि का 1962 में देहांत हो चुका है और उनकी समाधि धर्मराज मंदिर के साथ ही बनी है।
चंबा से 62 किलोमीटर दूर भरमौर कस्बा
हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा से 62 किलोमीटर दूर भरमौर कस्बा है। यंहा पर चौरासी देवी देवताओं के मंदिर व चिन्ह के रूप में विराजमान हैं। चौरासी परिसर में देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए जिला व बाहरी जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। खासतौर पर पवित्र मणिमहेश यात्रा के दौरान चौरासी परिसर में तिल धरने को भी जगह नहीं मिलती। धर्मराज मंदिर पर सुबह, दोपहर और शाम को आरती होती है। जबकि महाशिवरात्रि के मौके पर चारों पहर की आरती होती है।
क्या कहते हैं पुजारी
मंदिर के पुजारी पंडित लक्ष्मण दत शर्मा ने बताया कि मानव शरीर नश्वर है। ऐसे में हम अपने कर्मों के हिसाब से ही स्वर्ग-नर्क को पाते हैं। भरमौर स्थित चौरासी परिसर में विश्व का एकमात्र भगवान यमराज का मंदिर है। जहां पर मृत्यु के बाद पाप-पुण्य का लेखा-जोखा होता है।
पुजारी रवि शर्मा बताते हैं कि धर्म राज का मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है। जहां पर हर मृत प्राणी को कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है। पंडित हरिशरण शर्मा ने कहा कि उन्हें बुजुर्गों से सुनने को मिला है कि कई मृत आत्माओं की चीखें यहां सुनाई देती थीं। वर्तमान में ऐसा अभी तक लोगों को सुनने को नहीं मिला है।